सर्वांगासन
यह आसन ऐसा आसन है जो सभी अंगो के लिए लाभदायक है। यह आसन साधारण भी है और लाभदायक भी क्योकि हमारा शरीर पैरो पे खड़ा होता है,परन्तु सर्वांगासन में हम सब अंगो को उनके विपरीत कर्म में कर देते है।प्रत्येक अंग २४ घंटे अपना कार्य बिना रुके करता रहता है। इस आसन के द्वारा हम अंगो को कुछ सहायता प्रदान करते है जिससे उनका कुछ लोड कम हो जाता है और उनकी क्षमता बढ़ जाती है। दूसरे उन अंगो को अतिरिक्त प्राण ऊर्जा भी मिलती है,जो उन्हें अधिक शक्ति प्रदान करती है।
विधि:
सर्वप्रथम पीठ के बल सीधा लेट जाते है और दोनों हाथो को कमर की बराबर में रखकर हथेलियों को जमीन की तरफ रखते है,फिर पूरक (श्वांस को भरते हुए )करते हुए पैरो को ३० डिग्री पर फिर ६० डिग्री पर करते है और फिर ९० डिग्री पर कमर को हाथो से सहारा देते हुए उठाते है अगर पैरो को उठाने में कोई समस्या हो तो पहले पैरो को थोड़ा आगे सिर की तरफ ले जाये और फिर उपर उठाये। पैरो को बिलकुल सीधा कर ले और जमीन पर सिर्फ कोहनियाँ,कंधे,व गर्दन ही रहे। गर्दन का बन्ध लगा ले अर्थात ठुड्डी को छाती से लगा ले। निगाहो से पैरो के अंगूठो देखते हुए यथासम्भव कुम्भक (श्वांस रोकना)करते है और आसन में रहते है जब श्वांस पूरा हो जाये तो रेचन करते हुए वापस आते है।
लाभ :
सर्वांगासन पैरो सम्बन्धी अनेक विकारो को दूर करता है जैसे पैरो में सूजन ,पैरो में दर्द,घुटनो की समस्या।
पैरो में सूजन दो कारणों से आती है पहला अगर सही से ब्लड न मिल पाये ,और दूसरा तब जब किडनियों में कोई दिक्क़त हो। यह आसन ब्लड सर्कुलेशन और किडनी को लाभ प्रदान करता है। पैरो में दर्द वायु दोष बढ़ने के कारण होता है। जब अपान वायु अपने मार्ग से न बहकर उपर की तरफ को (सिर की तरफ को )बहने लगती है तब अनेक वायु विकार हो जाते है। सर्वांगासन में पैरो को उपर करने से अपान वायु पैरो की तरफ बहने लगती है। अर्थात सही मार्ग से गुजरने लगती है। जिससे वायु दोष दूर हो जाता है।
इसी प्रकार धातु की प्रवृति नीचे की तरफ बहने की होती है। शरीर को विपरीत दिशा में करने से धातु उपर की तरफ जाती है अर्थात आसन में रहते हुए हम धातु को बहने से रोक देते है,जिससे वह पुष्ट होता है और धातु सम्बन्धी रोग जैसे धातु पतन ,स्वप्नदोष दूर हो जाते है। कर्मेन्द्रियों की कोशिका मजबूत होती है जिससे मूत्र सम्बन्धी रोग भी ठीक हो जाते है। महिलाओ की मासिकधर्म सम्बन्धी समस्या जैसे मासिकधर्म समय से पहले होना या बाद में होना आदि का निवारण हो जाता है।
जब हम कुम्भक करते है और गर्दन को छाती से मिलाकर जलंदर बंध लगते है तो प्राण वायु सभी अंगो को अतिरिक्त मात्र में ऊर्जा देती है।जठर अग्नि प्रदीप्त होती है जिससे पेट की कब्ज,अपच,एसिडिटी,पीलिया जैसी बीमारिया ठीक हो जाती है।आंतो सम्बन्धी बीमारिया जैसे आंतो का उतरना आदि पैरो को उपर करने के कारण ठीक हो जाता है।
किडनी के लिए भी यह आसन लाभ प्रदान करता है क्योकि जितनी देर हम आसन में रहते है उतनी देर किडनी को अपने कार्य से आराम मिलता है इसी कारण यह किडनी के छानने की क्षमता को बढ़ाता है।
ह्रदय को रक्त लाने औरकोशिकाओ तक ले जाने में बहुत ऊर्जा खर्च करनी पडती है शरीर को उल्टा करने से ह्रदय को कम बल लगाना पड़ेगा अर्थात उसकी ऊर्जा कम खर्च होगी और उसे कुछ आराम भी मिलेगा। जिससे शरीर में अच्छे से रक्त संचरण भी होगा।
इसी प्रकार यह आसन कमर,रीढ़ की हड्डी के लिए भी अच्छा है इस आसन से यह मजबूत व लचीली होती है। नितम्बो की हड्डिया व मांसपेशियाँ दृढ व लचीली हो जाती है।
गले के रोगो में यह विशेष लाभ प्रदान करता है क्योकि यह थाइरॉयड ग्रंथि को विकसित करने का अच्छा आसन है इससे थाइरॉयड की समस्या भी दूर हो जाती हैजलंधर बंध लगने से थाइरॉयड ग्रंथि सक्रिय होने से श्वांस नलिका पर बड़ा सकारात्मक प्रभाव डालता है और श्वांस नलिका की सब प्रकार की एलर्जी तथा विकारो का निदान हो जाता है। अतः यह श्वसन तंत्र के विकारो को भी दूर करता है।
थाइरॉयड ग्रंथि से जो हार्मोन्स निकलते है वे अनेक शारीरिक मानसिक क्रियाओ को पूरा करते है। इनमे वह हार्मोन्स भी निकलता है जो पिटुटरी ग्रंथि को क्रियाशील करता है ,जिससे व्यक्ति को मानसिक तनाव नहीं होता,व्यक्ति की याददाश्त बढ़ती है ,तर्कशक्ति बढ़ती है ,आँखों कि रोशनी बढ़ती है।
सिर दर्द व भारीपन दूर होता है
सावधानियाँ :
खाली पेट अभ्यास करे।
कमर,गर्दन दर्द हो तो यह आसन न करे।
उच्च रक्तचाप या ह्रदय रोग हो तो यह आसन न करे।
थायरॉयड बढ़ा हो तो यह आसन न करे।
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