28 Oct 2015

उज्जायी प्राणायाम (Ujjayi Pranayaam)

उज्जायी प्राणायाम
उज्जायी प्राणायाम का वर्णन हठयोगप्रदीपिका तथा घेरण्ड सहिंता दोनों ग्रंथो में किया गया है। घेरण्ड सहिंता में वर्णित उज्जायी प्रणायाम थोड़ा दुर्लभ है। इसमें अंतराकृष्ट व बहिराकृष्ट वायु को मिलाकर ग्रहण करने को कहा गया है। जो आम साधक के लिए बहुत मुश्किल है। 
हठयोगप्रदीपिका में वर्णित उज्जायी प्राणायाम ही प्रचलन है और वह थोड़ा सरल भी है। 
हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है की -
"मुखं संयम्य नादिभ्यामाकृष्य पवनं शनेः। 
यथा लगति कंठात्तु ह्रदयाविधि सस्वनम्।।
पूर्ववत कुम्भयेत् प्राणं रेचयेदिडया ततः "
मुख को बन्द कर दोनों नथुनो से वायु को कुछ आवाज के साथ धीरे धीरे इस प्रकार लेना चाहिए जिससे कंठ से लेकर ह्रदय प्रदेश तक इसके स्पर्श का अनुभव हो। 
फिर सूर्यभेदन की तरह कुम्भक करे उसके बाद श्वांस को इड़ा नाड़ी से (बाये स्वर )निकाल दे। 
घेरण्ड सहिंता में कहा गया है की -
"नासाभ्यां  वायुमाकृष्य वायुं वक्त्रेण धारयेत्। 
ह्रदयग्लाभ्यां समाकृष्य मुखमध्ये च धारयेत्।।
मुखं प्रक्षाल्य संवन्द्य कुर्याज्जालन्धरं ततः। 
आशक्तिं कुम्भकं कृत्वा धारयेदविरोधतः।।"
दोनों नासाग्र के माध्यम से बहिः स्थित वायुवायु को आकर्षित कर मुख में स्थापित करने के पश्चात अन्तः स्थित वायु को ह्रदय व गलप्रदेश द्वारा आकृष्ट कर कुम्भक द्वारा मुख में लाकर बहिराकृष्ट एवं अंतराकृष्ट वायु का सम्मेलन कर दोनों को सम्मलित रूप में धारण करना। इसके उपरान्त मुख को धोकर वन्दना करके जालन्धर बन्ध लगाकर यथाशक्ति कुम्भक करते हुए वायु को धारण करना चाहिए। इस क्रिया का नाम ही उज्जायी कुम्भक है। 

फल :
उज्जायी प्राणायाम के सम्बन्ध में हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है की -
श्लेष्मदोषहरं कण्ठे देहानलविवर्धनम्। 
नाडीजलोदराधातुगतदोषविनाशनम्। 
गच्छता तिष्ठता कार्यमुज्जाय्याख्यं तू कुम्भकम्।।"
इस प्राणायाम से कफजन्य दोष दूर होते है तथा जठर अग्नि प्रदीप्त होती है। यह उज्जायी नामक कुम्भक नाड़ी,जलोदर तथा धातु सम्बन्धी दोष को नष्ट करने वाला है। 
घेरण्ड सहिंता में कहा गया है -
"उज्जायीकुम्भकं कृत्वा सर्वकार्याणि साधयेत। 
न भवेत् कफरोगश्च क्रूरवायुरजीर्णकम्।,
आमवातं क्षयं कासं ज्वरप्लीहा ण विद्यते। 
जरामृत्युविनाशाय चौज्जायी साध्येन्नरः।।"
उज्जायी प्राणायाम समस्त कार्यो में सिद्धि देता है इसके साथ ही श्लेष्मा रोग,दुष्ट वायु,अजीर्ण,आमवात,क्षयरोग,कास,ज्वर,प्लीहा,आदि रोग उज्जायी साधक को नहीं होता है। वृद्धावस्था एवं मृत्यु का विनाश करने के लिए मनुष्यो को उज्जायी प्रणायाम करना चाहिए। 



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