सीत्कारी प्राणायाम
इस प्राणायाम का वर्णन केवल हठयोगप्रदीपिका में ही। घेरण्ड सहिंता में इसका वर्णन नहीं है। यह सीत्कारी प्राणायाम शरीर को कामदेव सा आकर्षक बनाता है।
विधिः
हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है-
"सित्कां कुर्यात्तथा वक्त्रे ध्राणेनैव विजृम्भिकाम। "
मुख से सी सी की आवाज करते हुए पूरक करना चाहिए फिर यथासम्भव कुम्भक करने के बाद धीरे धीरे केवल नासिका से रेचन करना चाहिए
लाभ :
इसके लाभ के सम्बन्ध में कहा गया है की -
"एवमभ्यासयोगेन कामदेवो द्वितीयकः।
योगिनीचक्रसम्मान्यः सृष्टिसंहारकारकः।
नक्षुधा न तृष्णा निद्रा नैवालस्यं प्रजायते।।
भवेत स्वच्छन्ददेहस्तु सर्वोपद्रववर्जितः।
अनेन विधिना सत्यं योगीन्द्रो भूमिमण्डले।।"
इस प्राणायाम का अभ्यास करने से साधक दूसरा कामदेव जैसा हो जाता है।योगिनियों के द्वारा प्रशंसित होता है। सृष्टि की उत्पत्ति व संहार करने में सक्षम होता है। कभी भूख-प्यास ,निद्रा या सुस्ती नहीं होती।
इस प्रकार सीत्कारी का अभ्यास करते हुए साधक अपने शरीर पर पूर्ण नियंत्रण पा लेता है और सभी प्रकार के उपद्रवों से बचा रहता है। और इस भूमण्डल पर एक विख्यात योगी हो जाता है।
उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है की यह प्राणायाम शरीर में उपस्थित धातु को बहुत पुष्ट करता है।
सावधानियाँ :
यह प्राणयाम शर्दियो में न करे।
जिनकी प्रवर्ति कफ प्रधान है वह यह प्राणायाम न करे।
गले सम्बन्धी रोग हो तो यह प्राणायाम न करे।
गठिया या जोड़ो के दर्द की समस्या हो यह प्राणायाम न करे।
अधिक शर्दी लगती हो तो इसका हल्का अभ्यास करे।
निम्न रक्त चाप हो तो इसका अभ्यास न करे।
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