2 Nov 2015

शीतली प्राणायाम (shitli pranyaam)

 शीतली प्राणायाम 
यह प्राणायाम भी शरीर को ठंडक देने वाला है।हठयोगप्रदीपिका व् घेरण्ड सहिंता दोनों ग्रंथो में इस प्राणायाम का वर्णन है। शरीर के अनेक रोगो में यह प्राणायाम बहुत लाभदायक है। 
विधिः    
हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है की -
"जिह्वया वायुमाकृष्य पूर्ववत कुम्भसाधनम्। 
शनकैर्घ्राणरन्ध्राभ्याम् रेचयेत् पवनं सुधीः।।"
जीभ को दोनों और से नाले की विशेष आकृति में मोड़कर फिर उसके द्वारा वायु अंदर खींचकर पहले की तरह कुम्भक करे फिर धीरे धीरे दोनों नासाग्र से रेचन करे। 
घेरण्ड सहिंता में कहा गया है की -
"जिह्वया वायुमाकृष्य उद्रे पुरयेच्छनेः। 
क्षणच्च कुम्भकं कृत्वा नासाभ्यां रेचयेत्पुनः।।"
जिह्वा द्वारा वायु को आकृष्ट कर धीरे धीरे उदर को परिपूरित कर क्षण भर कुम्भक करके उस वायु को धारण करने के पश्चात दोनों नासाग्र से धीरे धीरे रेचन करना चाहिए। इसे ही शीतली कुम्भक कहते है। 
लाभ :
हठयोगप्रदीपिका में इसके लाभ  सम्बन्ध में कहा गया है की -
"गुलम्प्लीहादिकान रोगान ज्वरं पित्तं क्षुधां तृषाम्। 
विषाणि शीतली नाम कुम्भकोअयं निहन्ति च।। "
यह शीतली कुम्भक वायुगोला,तिल्ली,ज्वर,पित्त,भूख,प्यास आदि सभी प्रकार के रोगो तथा विष के प्रभाव को भी नष्ट करता है। 
घेरण्ड सहिंता में कहा गया है की -
"सर्वदा साधयेत् योगी शीतलीकुम्भकं शुभम। 
अजीर्ण कफ़पित्तच्च नैव तस्य प्रजायते।।"
इस शीतली कुम्भक के अभ्यास से साधक को अजीर्ण के साथ साथ कफ एवं पित्त के कारण उत्त्पन्न होने वाले रोग कभी नहीं होते है। 
सावधानियाँ :
खाली पेट अभ्यास करे।
सर्दियों में इसका अधिक अभ्यास न करे।
 जिनको बहुत अधिक बुखार रहता हो अभ्यास न करे।
गले सम्बन्धी रोग हो तो यह प्राणायाम न करे। 
गठिया की समस्या हो तो यह प्राणायाम न करे। 
निम्न रक्त चाप हो तो इसका अभ्यास न करे। 



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