भस्त्रिका प्राणायाम
अध्यात्म की दृष्टि से यह प्राणायाम बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हठयोगप्रदीपिका व घेरण्ड सहिंता दोनों ग्रंथो में इस कुम्भक का वर्णन है। यह प्राणायाम शरीर में तेजी से गर्मी पैदा करता है।
विधिः
हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है की -
"ऊर्वोरुपरि संस्थाप्य शुभे पादतले उभे।
पद्मासनं भवेदेतत् सर्वपापप्रणाशनम्।।
सम्यक् पद्मासनं बद्ध्वा समग्रीवोदरं सुधीः।
मुखं संयम्य यत्नेन प्राणं ध्राणेंन रेचयेत्।।
पद्मासन में बैठकर बुद्धिमान साधक कमर व गर्दन को सीधा रखते हुए मुख को बंद करके नासाग्र द्वारा वायु को थोड़ा यत्न पूर्वक अर्थात आवाज के साथ बाहर छोड़े,जिससे वायु स्पर्श का अनुभव ह्रदय,कण्ठ और कपाल तक हो। पुनः वायु को आवाज के साथ हृदय कमल तक वेगपूर्वक पूरित करे अर्थात अंदर ले। फिर तेजी से आवाज के साथ छोड़े। इस प्रकार साधक को बार बार रेचक पूरक करना चाहिए।
यथैव लोहकरेण भस्त्रा वेगेन चालयेत्।
तथेव स्वशरीरस्थं चालयेत् पवनं धिया।।
जिस प्रकार लौहार धौकनी को तेजी से चलाता है उसी प्रकार साधक को अपने शरीर में स्थित वायु को सावधानी पूर्वक चलाना चाहिए।
यदा श्रमो भवेद्देहे तदा सूर्येण पूरयेत्।।
यथोदरम् भवेत् पूर्ण पवनेन तथा लघु।
धारयेन्नसिका मध्यतर्जनीभ्यां विना दृढ़म्।
विधिवत कुम्भकम् कृत्वा रेचयेदिडयानिलम्।।"
जब शरीर में थकान महसूस हो तो साधक को दाए नाक से पूरक करके वायु को उदर में भरकर नाक को कनिष्ठका,अनामिका एवं अंगुष्ठ की सहायता से बंद करके यथासंभव कुम्भक करना चाहिए फिर बाए नाक से रेचन करना चाहिए।
लोहकार की धौकनी से जिस प्रकार वायु का आकर्षण किया जाता है उसी प्रकार नासापुटों से वायु का आकर्षण करने के पश्चात उदरमध्य में धीरे धीरे उसका परिचालन करना चाहिए।
उपर्युक्त विधि से बीस बार वायु का परिचालन करने के बाद कुम्भक करते हुए उस परिचालित वायु को धारण करते हुए पुनः उस धारित वायु को पूर्वकथित विधि द्वारा भीतर ही परिचालित करने के पश्चात अंत में भस्त्रिका विधि (अर्थात धीरे धीरे रेचन करना )का आश्रय करते हुए नासाग्र द्वारा बाहर निकाल देना चाहिए।
लाभ :
इसके लाभ के सम्बन्ध में हठयोगपरदपिका में कहा गया है की -
वातपीत्तश्लेष्महरं शरीराग्निविवर्धनम्।।
यह भस्त्रिका प्राणायाम वात -पित्त कफजन्य विकारो को दूर करती है। तथा जठराग्नि को प्रदीप्त करता है।
घेरण्ड सहिंता में कहा गया है की -
न च रोगं न च क्लेशमारोग्यच्च दिने दिने।।
इस प्राणायाम के अभ्यास से शरीर में किसी प्रकार की व्याधि अथवा कष्ट उत्त्पन्न नहीं होता है और साधक दिनों दिन आरोग्यता को प्राप्त होता है।
सावधानियाँ :
खाली पेट ही अभ्यास करे।
जिनको कब्ज या पेट सम्बन्धी समस्या हो वो इस प्राणायाम का हल्का
अभ्यास करे। वरना कब्ज की समस्या बढ़ भी सकती है।
उच्च रक्त चाप वाले बहुत हल्का अभ्यास करे या न करे।
ह्रदय रोगी कुम्भक न करे या इसका अभ्यास न करे।
हर्निया रोगी इसका अभ्यास न करे।
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