4 Nov 2015

भ्रामरी प्राणायाम (Bhramari Pranayaam)

भ्रामरी प्राणायाम 
पहला प्राणायाम है जिसका सीधा सम्बन्ध अध्यात्म से है। अर्थात यह प्राणायाम सीधे आपको योग के उद्देश्य अर्थात समाधि की ही प्राप्ति कराता है। सभी प्राणयाम में,दिव्य प्राणायाम है भ्रामरी प्राणायाम। हठयोगप्रदीपिका व घेरण्ड सहिंता दोनों ग्रंथो में इस कुम्भक का वर्णन है।लेकिन दोनों ग्रंथो में वर्णित भ्रामरी में थोड़ा अंतर है।  मन को शांत करने में यह प्राणायाम सर्वोत्तम है। 
विधिः 
भ्रामरी कुम्भक के लिए हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है की -
"वेगाद घोषं पुरकं भृङगनादम्। 
भृङगीनादं रेचकं मन्दमन्दम्।
योगीन्द्राणामेवमभ्यासयोगात्।।"
वेग से भवरे के गुंजन की आवाज करते हुए पूरक करना चाहिए। और फिर भ्रमर के समान गुंजन करते हुए ही रेचन करना चाहिए। 
घेरण्ड सहिंता में कहा गया है की -
"अर्द्ध रात्रि योगी जन्तूनां शब्दवर्जिते। 
कर्णो पिधाय हस्तभ्यां कुर्यात्पुरककुम्भकम्।। "
आधी रात में एकांत स्थान में बैठकर दोनों हाथो से कानो को बंद करके पूरक एवं कुम्भक करना चाहिए। 
लाभ :
इसके लाभ के सम्बन्ध में हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है की 
"चिट्टे जाता काचिदानन्दलीला। "
इसके अभ्यास से साधक के चित्त में अपूर्व आनंद की उत्पत्ति होती है। 
घेरण्ड सहिंता में कह गया है की -

"श्रणुयुदक्षिणे कर्णे नादमन्तर्गतं शुभम। 
प्रथमं झींझी,वंशी तत परम्।।" 
"मेघझर्झरभर्मरीघंटाकास्यान्तत परम्। 
तुरिभेरिमृदंगादीनिनादनकदुन्दुभिः।।"
"एवं नानाविधम् नादं जायते नित्यमभ्यासात। 
अनाहतस्य शब्दस्य तस्य शब्दस्य यो ध्वनिः।।"
"ध्वनिरन्तर्गतं ज्योतिज्योतिर्न्तगतं मन। 
तन्मनो विलयं याति तद्विष्णो परमं पदम्। 
एवच्च भ्रामरिसिद्धिः समाधिसिद्धिमाप्नुयात्।।"
स प्रकार कुम्भक करने से साधक के दाहिने कान से उसके अंतःस्थल की कल्याणदायक ध्वनियाँ सुनाई पड़ती है। उनमे सबसे पहले झींगुर ध्वनि फिर वंशी ध्वनि,मेघ ध्वनि ,झांझ ध्वनि,भ्रमरीध्वनि,घण्टा ध्वनि,कास्यपात्र ध्वनि,तुरही ध्वनि,मृदंग ध्वनि,दुन्दुभि ध्वनि,आदि अनेक ध्वनियाँ सुनाई पड़ती है। 
इस प्रकार कुम्भक करने से साधक को अनेक प्रकार की ध्वनियाँ सुनाई देती है और अंत में ह्रदय स्थित द्वादश दल विशिष्ट अनाहतनामक कमल के मध्य भाग से उठने वाले शब्द की ध्वनि सुनाई देती है। 
उस अनाहत कमल से आने वाली प्रतिध्वनि के फलस्वरूप परब्रह्मस्वरूप ज्योति प्रकट होती है उसी ज्योति में साधक का मन विलय हो जाता है और साधक को भ्रामरी की सिद्धि हो जाती है। इस कुम्भक की सिद्धि हो जाने के साथ ही समाधि की सिद्धि भी हो जाती है। 
सावधानियाँ :
एकांत स्थान में अभ्यास करे। 
आधी रात में अभ्यास करे। 
इसकी चर्चा किसी न करे।






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