6 Nov 2015

मूर्च्छा प्राणायाम (Murchcha Pranayaam)

मूर्च्छा प्राणायाम 
हठयोगप्रदीपिका व घेरण्ड सहिंता दोनों ग्रंथो में मूर्च्छा प्राणायाम का वर्णन है। यह कुम्भक,साधना के उद्देश्य से अति महत्त्वपूर्ण है आम साधक जिनका उद्देश्य शरीर को फिट रखना है वे इसका अभ्यास नहीं करते है।  परन्तु जिनका उद्देश्य स्वयं की अनुभूति करना होता है वे इसका अभ्यास करते है।
हठयोगप्रदीपका में कहा गया है की - 
"पुरकांते गाढतरं बद्ध्वा जालन्धरं शनेः। "
पूरक करने के बाद अति दृढ़तापूर्वक जालन्धर बन्ध लगाकर धीरे धीरे वायु का रेचन करना ही 
मूर्च्छा कुम्भक है। 
घेरण्ड सहिंता में कहा गया है की -
"सुखेन कुम्भकं कृत्वा मनश्च भूर्वोरन्तरम्। 
सन्त्यज्य विषयान सर्वान् मनोमुर्च्छा सुखप्रदा। "
साधक द्वारा अपने मन को सुखपूर्वक भौहो के मध्य स्थिर करके कुम्भक का सम्पादन करते हुए समस्त विषयो से मन को हटाकर सुखपूर्वक मूर्च्छा की अवस्था में अवस्थित कर देना ही मूर्च्छा  कुम्भक है। 
लाभ :
दोनों ग्रंथो में इसके लाभ का अधिक वर्णन नहीं है।
इसके लाभ के सम्बन्ध में हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है की -
"रेचयेनमूर्च्छनाख्येयं मनोमुर्च्छा सुखप्रदा।।"
अर्थात यह मूर्च्छा नामक प्राणायाम मनो मूर्च्छा लाने वाला तथा सुख देने वाला है।  
घेरण्ड सहिंता में भी इसके फल के सम्बन्ध में कहा गया है की -
"आत्मनि मनसो योगदानन्दं जायते ध्रुवम्।।"
इस प्रकार उस मूर्छित प्रायः मन का आत्मा में मिलन होता है तो निश्चित रूप से एक अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है। 
इस प्रकार कहा जा सकता है की इस प्राणायाम के अभ्यास से साधक का मन नियंत्रण में होता है। क्योकि कहा गया है की यह कुम्भक मनो मूर्च्छा अर्थात मन को मूर्च्छा लाने वाला है। हजार प्रयत्न करने के बाद भी साधक अपने मन पर नियंत्रण नहीं कर पाता है।इसके अभ्यास से यह कार्य आसान हो जाता है।
सावधानियाँ : 
खाली पेट ही अभ्यास करे।
उच्च रक्त चाप वाले न करे।
ह्रदय रोगी न करे।
जिनको किडनी सम्बन्धी समस्या हो यह कुम्भक न करे।

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