सरवाईकल स्पॉन्डिलाइटिस (गर्दन दर्द या कंधे का दर्द )
गर्दन का दर्द या कंधे दर्द आज के समय की बहुत ही सामान्य बीमारी है। इसका बीमारी का मुख्य कारण अनियमित दिनचर्या व खानपान है।
और भी अनेक बहुत से कारण है जैसे -तकिये का प्रयोग करना,सोफे ,गद्देदार बेड या कुर्सियों पर सोना ,कम्प्यूटर पर काम करना,अधिक टी वी देखना ,झुककर अधिक कार्य करना।
इसी प्रकार और भी अनेक असंख्य कारण है जिनसे सर्वाइकल की समस्या होती है।
परन्तु अगर गहराई से देखा जाये तो उपरोक्त सभी कारणो से शरीर में वायु दोष बढ़ता है। शरीर की लगभग सभी बीमारियाँ वायु दोष (गैस्टिक)के कारण ही होती है।
शरीर में बहने वाली वायु पांच प्रकार की होती है।
प्राण,समान,उदान,व्यान,अपान। इन पांचो के शरीर में निश्चित स्थान है। इनमे अपान वायु का स्थान शरीर में नाभि से पैरो तक है। जब अपान वायु गुदा मार्ग से न बहकर ऊपर की तरफ बहने लगती है तो शरीर में अनेक प्रकार से दर्द होता है। इसलिए ही इसे दुष्ट वायु भी कहते है। गर्दन दर्द,कंधे का दर्द इसी वायु का एक दुष्प्रभाव है।
योग से सरवाईकल स्पॉन्डिलाइटिस (गर्दन दर्द या कंधे का दर्द ) उपचार :
योग के द्वारा अन्य बीमारियो के समान ही इन समस्याओ का निदान सम्भव है। योग से यह समस्या पूर्णतः दूर हो जाती है। किसी योग्य योगाचार्य के सानिध्य में एक सप्ताह के अंदर ही रोगी को पूर्ण स्वास्थ्य लाभ मिलने लगता है।
विभिन्न योगासन व प्राणायाम गर्दन दर्द व कंधे के दर्द में लाभ देते है -
आसन :
1 सूक्ष्म आसन
और भी अनेक बहुत से कारण है जैसे -तकिये का प्रयोग करना,सोफे ,गद्देदार बेड या कुर्सियों पर सोना ,कम्प्यूटर पर काम करना,अधिक टी वी देखना ,झुककर अधिक कार्य करना।
इसी प्रकार और भी अनेक असंख्य कारण है जिनसे सर्वाइकल की समस्या होती है।
परन्तु अगर गहराई से देखा जाये तो उपरोक्त सभी कारणो से शरीर में वायु दोष बढ़ता है। शरीर की लगभग सभी बीमारियाँ वायु दोष (गैस्टिक)के कारण ही होती है।
शरीर में बहने वाली वायु पांच प्रकार की होती है।
प्राण,समान,उदान,व्यान,अपान। इन पांचो के शरीर में निश्चित स्थान है। इनमे अपान वायु का स्थान शरीर में नाभि से पैरो तक है। जब अपान वायु गुदा मार्ग से न बहकर ऊपर की तरफ बहने लगती है तो शरीर में अनेक प्रकार से दर्द होता है। इसलिए ही इसे दुष्ट वायु भी कहते है। गर्दन दर्द,कंधे का दर्द इसी वायु का एक दुष्प्रभाव है।
योग से सरवाईकल स्पॉन्डिलाइटिस (गर्दन दर्द या कंधे का दर्द ) उपचार :
योग के द्वारा अन्य बीमारियो के समान ही इन समस्याओ का निदान सम्भव है। योग से यह समस्या पूर्णतः दूर हो जाती है। किसी योग्य योगाचार्य के सानिध्य में एक सप्ताह के अंदर ही रोगी को पूर्ण स्वास्थ्य लाभ मिलने लगता है।
विभिन्न योगासन व प्राणायाम गर्दन दर्द व कंधे के दर्द में लाभ देते है -
आसन :
1 सूक्ष्म आसन
हस्त
चालन : सावधान
मुद्रा में खड़े होकर श्वांस की गति को सामान्य करे।पूरक(श्वांस भरकर) करे फिर
श्वांस को रोककर(कुंभक करके) दोनों
हाथो को गोलाई में चलाये ,प्रारम्भ
में 10 से 15 बार या यथाकुम्भक हाथो को चलाये।रुककर
श्वांस को सामान्य करे।फिर पूरक करके विपरीत दिशा से ऐसे ही दोनों हाथो को चलाये।
अभ्यास के प्रारम्भिक दिनों में यह क्रिया एक एक हाथ से बिना पूरक किये अर्थात
बिना श्वांस को रोके,सामान्य
श्वांस से करे।
शरीर को क्रियाशील करने में
यह आसन श्रेष्ठ है।
मुष्ठी
विकासक :मुष्ठी
अर्थात मुठ्ठी। सावधान मुद्रा में खड़े होकर पूरक करते हुए,हाथो को ह्रदय के सामने
लाकर कुंभक करके दोनों हाथो की मुठियो को प्रेशर के साथ खोलते है बंद करते है। फिर
रेचन करते हुए वापस आते है।
मणिबन्ध
विकासक : सावधान मुद्रा
में खड़े होकर पूरक करके
हाथो को ह्रदय के सामने लाकर कुम्भक करके मुष्ठी बंद करके
दोनों मुष्ठियो को कलाई से चारो तरफ
यथासम्भव चलाना,रेचन करते हुए वापस आये।
उसके बाद पूरक करके कुम्भक करते हुए विपरीत दिशा से चलाये।
करतल
चालन: सावधान
मुद्रा में खड़े होकर पूरक करते हुए हाथो को ह्रदय के सामने लेकर आये फिर कुम्भक करके
अगुठो को स्थिर करते हुए अंगुलियों को यथाकुम्भक चलाये रेचन करते हुए वापस आ
जाये। फिर दूसरे चरण में पूरक करके हाथो को कंधो के बराबर में लेकर आये कुम्भक
करके उसी प्रकार अंगुलियों को यथासम्भव चलाये।रेचन करते हुए फिर वापस आ जाये।तीसरे
चरण में पूरक करते हुए हाथो को कोहनियो से मोड़कर कुंभक करके अगुठो को स्थिर करके
अंगुलियों को यथासम्भव
चलाये।रेचन करते हुए वापस आ जाये।
करतल
पृष्ठ शक्ति विकासक : सावधान
मुद्रा में खड़ा होकर पूरक करते हुए हाथो को ह्रदय के सामने कर कुम्भक करके हथेलियों
को खोलकर कलाई से उपर निचे
चलाना। इसका द्वितीय व तृतीय चरण करतल चालन के समान है इसमें हथेलिया खोलकर ऊपर
निचे चलाना है।
नभ
दृष्टि दायक : सावधान मुद्रा में खड़े होकर गर्दन को अधिकतम पीछे
की तरफ मोड़ते
है। मुँह को बन्द करके नाक से तेजी से रेचक पूरक करते हुए आँखों से आकाश को देखते
हुए ध्यान शिखा मण्डल पर लगाये। प्रारम्भ में 5 से 10 बार यह
क्रिया करे।
ग्रीवा
चालन : सावधान
मुद्रा में खड़े होकर हाथो को कमर पर रखकर पूरक करके गर्दन को आगे पीछे यथसम्भव चलाये,फिर रेचन करते हुए वापस
आये।श्वांस भरकर गर्दन को
दाये बायें चलाये फिर वापस आये। तीसरे क्रम में फिर पूरक करे
गर्दन को अगल बगल चलाये रेचन करके वापस आये। चौथे चरण में श्वांस भरकर गर्दन को चारो
तरफ चलाये रेचन करे फिर पूरक करके गर्दन को विपरीत दिशा से चलाये।
विरोध दर्शी :इस आसन को करते समय साँस को रोके नहीं। हर व्यायाम को 5-6 बार तक करें और इसके बाद शरीर को ढीला छोड दें।अपने माथे को हथेलियों पर दबाब दे और सर को अपनी जगह से हिलने न दें।अपनी हथेलियों का दबाब सिर के बायें तरफ़ दे और सिर को हिलने न दें। यही क्रम दायें तरफ़ भी करें।अपनी दोनों हथेलियों का दबाब सिर के पीछे दें और सिर को स्थिर रखें।अपनी हथेलियों का दबाब माथे पर दें और सिर को स्थिर रखें।
2. ताड़ासन ;
3. अर्द्धचक्रासन:
4. हस्तपादासन :
5. कटिचालन :
6. त्रिकोणासन :
7. कोनासन :
लेटकर करनेवाले आसन A.(पीठ के बल):
1. चक्रासन
2. मरकट आसन
3. पवनमुक्तासन
B.पेट के बल: 1. भुजंगासन
2. धनुरासन
3. मकरासन
बैठकर करने वाले आसन :
1. वज्रासन
2. मण्डूक आसान
3. सुप्तवज्रासन
4. मत्स्यासन
5. अर्धमत्स्येंद्रासन
प्राणायाम :
1. अनुलोम विलोम - 5 से 15 MIN.
2. कपालभाति - दो बार 20 स्टोक
3. उज्जायी - 2 से 5 MIN .
4. भ्रामरी - 10 से 20 MIN
5. ओउम उच्चारण - 15 से 30 MIN
ध्यान :
कम से कम 30 मिनट विशुद्धि चक्र (गर्दन के पिछले भाग पर जहां रीढ़ की हड्डी का जुड़ाव हो) पर ध्यान लगाना।
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