गुर्दे के रोगो में योग
Introduction (परिचय ):
हमारे शरीर का वह महत्त्वपूर्ण अंग जो शरीर के लगभग सभी सूक्ष्म व स्थूल विजातीय द्रव्यों को छानकर मूत्र के रूप में बाहर निकालता है ,गुर्दा (kidny )कहलाता है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में गुर्दे की संख्या दो होती है जो शरीर में पीछे कमर के निचले भाग में रीढ़ की हड्डी के दोनों और काजू के समान आकार के होते है। अगर किसी कारणवश व्यक्ति का एक गुर्दा ख़राब हो जाये तो दूसरे गुर्दे से व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है। क्योकि एक गुर्दा ही शरीर के सभी विषाक्त को बाहर निकालता रहता है। यह शरीर का बहुत ही अनिवार्य व महत्त्वपूर्ण अंग है। इसके खराब होने पर अनेक बीमारिया शरीर में पैदा हो जाती है।गुर्दे सम्बन्धी बीमारी होने पर उसका प्रभाव ह्रदय पर,अग्नाशय पर,यकृत पर,प्लीहा पर और भी लगभग सभी अंगो पर पड़ता है। जिस कारण अन्य अंगो से संबंधित रोग भी रोगी को हो जाते है। जैसे किडनी खराब हो जाने पर रक्त का शुद्धिकरण होने के बाद विषाक्त बाहर नहीं निकलते जिसका प्रभाव ह्रदय की क्रियाशीलता पर पड़ता है और रोगी धीरे धीरे ह्रदय का रोगी भी हो जाता है। किडनी खराब होने पर कब्ज की समस्या भी बढ़ जाती है क्योकि लिवर सही कार्य नहीं कर पाता है जो धीरे धीरे शुगर रोग का कारण बन जाता है। शरीर के सभी मुख्य अंग एक दूसरे के पूरक है। एक के खराब होने पर उसका असर दूसरे की क्रियाशीलता पर पड़ता है। ह्रदय,फेफड़े,लिवर जैसे अंगो की खराबी का प्रभाव किडनी पर भी पड़ता है। और किडनी का प्रभाव इन अंगो पर पड़ता है। यही कारण है की किडनी रोगी को अक्सर टी बी ,हाई बी पी,सुगर,फीवर जैसे रोग हो जाते है या इन रोगो के रोगी की किडनी ख़राब हो जाती है।
सामान्य लक्षण :
किडनी के सम्बन्ध में यह सबसे बड़ी समस्या है की यह कब ख़राब हो जाती है पता ही नहीं चलता। प्रथम अवस्था गुजर जाने के बाद ही अक्सरकर हमे किडनी खराबी का पता चलता है।
ऐसा भी नहीं की इसके खराबी के लक्षण पहले से दिखाई नहीं देते,दिखाई तो देते है परन्तु उनको सामान्य समझकर हम इग्नोर कर देते है। यही आगे चलकर बड़ी बिमारी का कारण बनते है।
ऐसे लक्षण जो किडनी खराबी की अवस्था में दिखाई देते है निम्न प्रकार से है -
1 . किडनी रोगी को कमजोरी महसूस होती है।
2. किसी भी कार्य को करने में मन नहीं लगता है उत्साह और उमंग ख़त्म हो जाती है।
3. सुबह उठते ही आलस और उबाई रहती है।
4. भूख कम हो जाती है। तथा प्यास अधिक लगती है। पेट में भारीपन रहता है।
5. नाड़ी की गति बढ़ जाती है। और उच्च रक्त चाप रहता है।
6. हीमोग्लोबिन की मात्र कम हो जाती है।
7. सिरदर्द,बुखार,उल्टियाँ,एसिडिटी,खांसी ,जुकाम जैसी बीमारियाँ होने लगती है।
8. पैरो में सूजन आ जाती है।
9. मूत्र में खून या अल्पमात्रा में,गर्म,जलन,व पीड़ा के साथ आता है।
10. आँखों के निचे सूजन,भारीपन तथा पानी सा भरा भरा रहता है।
11. पेट दर्द,गर्दन दर्द,कमर दर्द जैसे समस्याएं रहने लगती है।
12. धीरे धीरे रोगी में नपुंसकता बढ़ने लगती है।
और भी अनेक लक्षण है जो किडनी रोगी में दिखाई देने लगते है। यह जरुरी नहीं की उपरोक्त सभी लक्षण रोगियों में दिखाई दे। उपरोक्त लक्षणों में से कुछ लक्षण किसी रोगी में हो सकते है।
कारण :
किडनी के ख़राब होने का मुख्य कारण अनियमित दिनचर्या व अनियंत्रित आहार विहार है। वर्तमान समय में,हम समय से कोई कार्य नहीं करते है। समय से सोना,उठना,खाना,पीना,व्यायाम करना लगभग बंद ही हो चूका है।
समय से सोना या उठना नहीं होगा तो कब्ज रहना शुरू हो जाता है , जो किडनी को भी प्रभावित करता है।
प्रदूषित वायु वाले स्थान पर कार्य करने से फेफड़े प्रभावित होगे। जिससे रक्त संचरण भी प्रभावित होगा और ह्रदय पर दबाव बढ़ेगा। ब्लड सेल्स में तनाव होगा बी पी बढ़ेगा जो किडनी को प्रभावित करेंगे।
किडनी के कार्य :
शरीर में उपस्थित दोनों किडनी शरीर के सभी अपशिष्टों को अनेक क्रियाओ के द्वारा शरीर से मूत्र के रूप में बाहर निकाल देती है। यह शरीर के लिए निम्न कार्यो को करती है --
1. रक्त में से अतिरिक्त जल की मात्रा अलग करती है तथा मूत्र को बनाती है।
2. शरीर के सभी बेकार व अपशिष्टों को बाहर निकालती है।
3. सभी रसायनो व हार्मोन्स को संतुलित रखती है।
4. कैल्शियम व फास्फोरस की अतिरिक्त मात्रा को बाहर निकालती है। जिससे पथरी नहीं होती है।
5. अक्सर देखा गया है की किडनी रोगी का हीमोग्लोबिन कम हो जाता है। अतः एक प्रकार से यह हीमोग्लोबिन की पूर्ति भी करती है।
6. यूरिया जैसे अपशिष्टों को बाहर निकलती है जिससे घुटनो के दर्द ,जोड़ो के दर्द जैसे बीमारी नहीं होती।
किडनी के रोगो में योग :
जैसा की अनेक शोधो से स्पष्ट हुआ है की असाध्य धोषित हो चुकी बीमारियो जैसे सुगर,ह्रदय रोग,उच्च रक्त चाप,कैंसर आदि को योग से पूर्णतः ठीक किया जा सकता है।किडनी रोगो में भी योग पूर्णतः लाभ देता है। योग के मुख्यतः आसन,प्राणायाम तथा ध्यान द्वारा किडनी रोग में आश्चर्यजनक लाभ होता है।
किडनी रोगो में निम्नलिखित आसन,प्राणायाम लाभ प्रदान करते है।
Asan :
a. Khade hokar karne wale asan:
Tadasan
हमारे शरीर का वह महत्त्वपूर्ण अंग जो शरीर के लगभग सभी सूक्ष्म व स्थूल विजातीय द्रव्यों को छानकर मूत्र के रूप में बाहर निकालता है ,गुर्दा (kidny )कहलाता है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में गुर्दे की संख्या दो होती है जो शरीर में पीछे कमर के निचले भाग में रीढ़ की हड्डी के दोनों और काजू के समान आकार के होते है। अगर किसी कारणवश व्यक्ति का एक गुर्दा ख़राब हो जाये तो दूसरे गुर्दे से व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है। क्योकि एक गुर्दा ही शरीर के सभी विषाक्त को बाहर निकालता रहता है। यह शरीर का बहुत ही अनिवार्य व महत्त्वपूर्ण अंग है। इसके खराब होने पर अनेक बीमारिया शरीर में पैदा हो जाती है।गुर्दे सम्बन्धी बीमारी होने पर उसका प्रभाव ह्रदय पर,अग्नाशय पर,यकृत पर,प्लीहा पर और भी लगभग सभी अंगो पर पड़ता है। जिस कारण अन्य अंगो से संबंधित रोग भी रोगी को हो जाते है। जैसे किडनी खराब हो जाने पर रक्त का शुद्धिकरण होने के बाद विषाक्त बाहर नहीं निकलते जिसका प्रभाव ह्रदय की क्रियाशीलता पर पड़ता है और रोगी धीरे धीरे ह्रदय का रोगी भी हो जाता है। किडनी खराब होने पर कब्ज की समस्या भी बढ़ जाती है क्योकि लिवर सही कार्य नहीं कर पाता है जो धीरे धीरे शुगर रोग का कारण बन जाता है। शरीर के सभी मुख्य अंग एक दूसरे के पूरक है। एक के खराब होने पर उसका असर दूसरे की क्रियाशीलता पर पड़ता है। ह्रदय,फेफड़े,लिवर जैसे अंगो की खराबी का प्रभाव किडनी पर भी पड़ता है। और किडनी का प्रभाव इन अंगो पर पड़ता है। यही कारण है की किडनी रोगी को अक्सर टी बी ,हाई बी पी,सुगर,फीवर जैसे रोग हो जाते है या इन रोगो के रोगी की किडनी ख़राब हो जाती है।
सामान्य लक्षण :
किडनी के सम्बन्ध में यह सबसे बड़ी समस्या है की यह कब ख़राब हो जाती है पता ही नहीं चलता। प्रथम अवस्था गुजर जाने के बाद ही अक्सरकर हमे किडनी खराबी का पता चलता है।
ऐसा भी नहीं की इसके खराबी के लक्षण पहले से दिखाई नहीं देते,दिखाई तो देते है परन्तु उनको सामान्य समझकर हम इग्नोर कर देते है। यही आगे चलकर बड़ी बिमारी का कारण बनते है।
ऐसे लक्षण जो किडनी खराबी की अवस्था में दिखाई देते है निम्न प्रकार से है -
1 . किडनी रोगी को कमजोरी महसूस होती है।
2. किसी भी कार्य को करने में मन नहीं लगता है उत्साह और उमंग ख़त्म हो जाती है।
3. सुबह उठते ही आलस और उबाई रहती है।
4. भूख कम हो जाती है। तथा प्यास अधिक लगती है। पेट में भारीपन रहता है।
5. नाड़ी की गति बढ़ जाती है। और उच्च रक्त चाप रहता है।
6. हीमोग्लोबिन की मात्र कम हो जाती है।
7. सिरदर्द,बुखार,उल्टियाँ,एसिडिटी,खांसी ,जुकाम जैसी बीमारियाँ होने लगती है।
8. पैरो में सूजन आ जाती है।
9. मूत्र में खून या अल्पमात्रा में,गर्म,जलन,व पीड़ा के साथ आता है।
10. आँखों के निचे सूजन,भारीपन तथा पानी सा भरा भरा रहता है।
11. पेट दर्द,गर्दन दर्द,कमर दर्द जैसे समस्याएं रहने लगती है।
12. धीरे धीरे रोगी में नपुंसकता बढ़ने लगती है।
और भी अनेक लक्षण है जो किडनी रोगी में दिखाई देने लगते है। यह जरुरी नहीं की उपरोक्त सभी लक्षण रोगियों में दिखाई दे। उपरोक्त लक्षणों में से कुछ लक्षण किसी रोगी में हो सकते है।
कारण :
किडनी के ख़राब होने का मुख्य कारण अनियमित दिनचर्या व अनियंत्रित आहार विहार है। वर्तमान समय में,हम समय से कोई कार्य नहीं करते है। समय से सोना,उठना,खाना,पीना,व्यायाम करना लगभग बंद ही हो चूका है।
समय से सोना या उठना नहीं होगा तो कब्ज रहना शुरू हो जाता है , जो किडनी को भी प्रभावित करता है।
प्रदूषित वायु वाले स्थान पर कार्य करने से फेफड़े प्रभावित होगे। जिससे रक्त संचरण भी प्रभावित होगा और ह्रदय पर दबाव बढ़ेगा। ब्लड सेल्स में तनाव होगा बी पी बढ़ेगा जो किडनी को प्रभावित करेंगे।
किडनी के कार्य :
शरीर में उपस्थित दोनों किडनी शरीर के सभी अपशिष्टों को अनेक क्रियाओ के द्वारा शरीर से मूत्र के रूप में बाहर निकाल देती है। यह शरीर के लिए निम्न कार्यो को करती है --
1. रक्त में से अतिरिक्त जल की मात्रा अलग करती है तथा मूत्र को बनाती है।
2. शरीर के सभी बेकार व अपशिष्टों को बाहर निकालती है।
3. सभी रसायनो व हार्मोन्स को संतुलित रखती है।
4. कैल्शियम व फास्फोरस की अतिरिक्त मात्रा को बाहर निकालती है। जिससे पथरी नहीं होती है।
5. अक्सर देखा गया है की किडनी रोगी का हीमोग्लोबिन कम हो जाता है। अतः एक प्रकार से यह हीमोग्लोबिन की पूर्ति भी करती है।
6. यूरिया जैसे अपशिष्टों को बाहर निकलती है जिससे घुटनो के दर्द ,जोड़ो के दर्द जैसे बीमारी नहीं होती।
किडनी के रोगो में योग :
जैसा की अनेक शोधो से स्पष्ट हुआ है की असाध्य धोषित हो चुकी बीमारियो जैसे सुगर,ह्रदय रोग,उच्च रक्त चाप,कैंसर आदि को योग से पूर्णतः ठीक किया जा सकता है।किडनी रोगो में भी योग पूर्णतः लाभ देता है। योग के मुख्यतः आसन,प्राणायाम तथा ध्यान द्वारा किडनी रोग में आश्चर्यजनक लाभ होता है।
किडनी रोगो में निम्नलिखित आसन,प्राणायाम लाभ प्रदान करते है।
Asan :
a. Khade hokar karne wale asan:
Tadasan
Anguli
chalan
Utkat asan(kursi aasn)
Vrakshasan
Uthithastpadasan
Hastpadasan
Ardhchkrasan
Konasan
Trikonasan
b. Peeth ke bal letkar:
Shlbhasan (ek ek pair se)
Uttanpadasan
Sarvangasan
Halasan
Nokasan
Setubandhasan
Cycle chalan
Markatasan
Pwanmuktasan
Shwasan
c. Pet ke bal letkar:
Ardhnabhyasan
nabhyasan
Bhujangasan
Dhanurasan
Padachalan
Makrasan
d.Baithkar krne wale asan:
Pairchalan
Bhadrasan
Titliasan
Ardhmatsyendrasan
Pachimuttanasan
Janushirshasan
Bhunaman
Vajrasan
Mandook asan
Suptvajrasan
Ushtrasan
Pranayam:
किडनी रोगो में सभी आठ प्रकार के प्राणायाम लाभ पहुँचते है। परन्तु अनुलोम विलोम, चद्रभेदन ,शीतली,उज्जायी,भ्रामरी व ओम उच्चारण से विशेष लाभ होता है।इसके साथ ही मूल बन्ध व उड्डयान बन्ध का अभ्यास रोगी को लाभ देता है
ध्यान :
ध्यान एक ऐसी क्रिया है जिसके लाभ का वर्णन करने में कोई भी लेखनी सक्षम नहीं है। यह सम्पूर्ण रोगो में सभी परिस्थितियों में मनुष्य को लाभ देता है परन्तु अंग विशेष के लाभ के लिए चक्र पर ध्यान लगाना ज्यादा लाभ करता है।
किडनी के लाभ के लिए स्वाधिष्ठान चक्र पर ध्यान लगाना चाहिए।
hello Sir Good work done by you.
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