11 Mar 2016

हस्त मुद्राएं (प्राण मुद्रा व अपान मुद्रा)

हस्त मुद्राएं (प्राण मुद्रा व अपान मुद्रा)
प्राण मुद्रा
जल तत्व वाली व पृथ्वी तत्व वाली ऊँगली को अग्नि तत्व से मिलाने पर यह मुद्रा बनती है। अर्थात कनिष्का उंगली व अनामिका उंगली के प्रथम पोर को अंगूठे के प्रथम पोर से मिलाकर हल्का दबाने से प्राण मुद्रा बनती है। शेष दो उंगलियो को सीधा रखते है। 
लाभ: जैसा की नाम से स्पष्ट है प्राण अर्थात जीवन क्योकि जब तक प्राण रहता है, जीवन रहता है। 
योग की भाषा में अगर बात करे तो शरीर में पांच प्रकार की वायु (प्राण का )वास होता है। जिनके नाम प्राण,अपान,समान,व्यान,उदान है। ये पांचो शरीर में अलग अलग कार्य करते है तथा शरीर के अलग अलग हिस्सों में वास करते है। इनकी विस्तृत जानकारी किसी दूसरे ब्लॉग में लिखुगा अभी प्राण मुद्रा को लिखता हु। इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर में प्राण का संचार अच्छे से होता है। शरीर की सभी समस्याओं में प्राण मुद्रा लाभ देती है। शरीर में पर्याप्त रक्त संचरण में यह मुद्रा लाभ देती है। कोई रक्त कोशिका अगर ब्लोक हो जाये तो इसके अभ्यास से वह ठीक हो जाती है। रक्त का थक्का नहीं जमता। इसी कारण यह मुद्रा ह्रदय के लिए बहुत लाभदायक है। इसका साधक ह्रदय रोगी नहीं होता है। लकवा रोग में किसी अंग(हाथ,पैर,आँख,कान में ) में आने वाली कमजोरी को भी यह मुद्रा दूर कर देती है। 
प्राण मुद्रा 

















अपान मुद्रा
इस मुद्रा का नाम शरीर में बहने वाली अपान वायु के नाम पर अपान मुद्रा है। मध्यमा व अनामिका उंगली के प्रथम पोर को अंगूठे के प्रथम पोर से मिलाकर हल्का सा दबाकर रखने पर अपान मुद्रा बनती है। शेष दोनों उंगलियो को सीधा रखते है। 
लाभ :अपान भी शरीर में बहने वाले पांच प्रकार के प्राण में से एक होता है। और इस अपान के बहने का मार्ग  निचे की तरफ होता है। अर्थात यह गुदा मार्ग से बहती है। अपान वायु का उपर की तरफ बहना ही अनेक रोगो का कारण होता है। इस मुद्रा से अपान वायु अपने मार्ग से बहने लगती है। इसी कारण अपान मुद्रा बवासीर,भगंदर जैसे गुदा रोगो में लाभ प्रदान करती है। इसके अभ्यास से मूत्र संबंधी रोग भी नहीं होते। शरीर का भारीपन दूर हो जाता है। पेट की सभी बीमारियां जैसे कब्ज,अपच,सुगर,आँतो की बीमारी ठीक हो जाती है।शरीर में रहने वाला दर्द दूर हो जाता है।

अपान  मुद्रा 
   

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