हस्त मुद्राएं (वरुण मुद्रा व सूर्य मुद्रा )
वरुण मुद्रा
जल तत्व वाली कनिष्का ऊँगली के पहले पोर को अंगूठे के पहले पोर से लगाकर हल्का सा दबाकर रखने पर वरुण मुद्रा बनती है। शेष तीनो उंगलियो को कसकर सीधा रखते है।
लाभ :यह मुद्रा शरीर में जल तत्व की मात्रा को संतुलित करती है। जिससे शरीर की रक्त सम्बन्धी समस्याएं,मूत्र सम्बन्धी समस्याएं ठीक हो जाती है। अधिक प्यास लग्न,स्वेद का अधिक आना जैसे समस्याएं दूर हो जाती है। त्वचा की खुश्की,चेहरे की खुश्की दूर हो जाती है। चेहरे के दाग धब्बे दूर हो जाते है। बरसात में इस मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
वरुण मुद्रा |
सूर्य मुद्रा
अनामिका उंगली के प्रथम पोर को अंगूठे के मूल में लगाकर दबाने से सूर्य मुद्रा बनती है।
लाभ :सूर्य अर्थात अनन्त ऊर्जा का भंडार। इस मुद्रा से शरीर को शक्ति प्राप्त होती है। कोई भी ऊर्जा वाला कार्य करने से पहले इस मुद्रा का अभ्यास विशेष लाभ देता है। योग में एक सूर्य नाड़ी कही गयी है,जिसे पिग्ला नाड़ी भी कहते है। उस नाड़ी के समान ही यह मुद्रा है तथा इसके लाभ भी वही है जो सूर्य नाड़ी के है। इस मुद्रा के अभ्यास से जठर अग्नि प्रदीप्त होती है। जिससे पाचन क्रिया मजबूत होती है। कब्ज,अपच,शुगर जैसे रोग नहीं होते है।गैस नहीं बनती है। मोटापा कम होता है कोलस्ट्रोल की मात्र कम होती है। सर्दी,जुकाम जैसे रोग ठीक हो जाते है।
सूर्य मुद्रा |
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