8 May 2017

# yoga fights diabetes भारत का एक ऐसा गांव जहाँ किसी भी तरह का कोई नशा नहीं किया जाता:"

"ग्राम मिरगपुर :भारत का एक ऐसा गांव जहाँ किसी भी तरह का कोई नशा नहीं किया जाता:"
सत्त साहिब 
आज एक अति विशेष व अति महत्त्वपूर्ण खोज को आप सब के सूचनार्थ लिख रहा हुँ। क्योकि सुचना हमारे देश के गौरव की,हमारी सभ्यता के विकास की,व्यक्ति के विकास की है। और यह विकास शारीरिक,ना होकर अध्यात्मिक है। अतः योग के ब्लॉग में यह सब लिखना मुझे उचित भी लगा है। 
परमपिता परमेश्वर की शरण में खुद को समर्पित करके  जो कुछ भी लिख रहा हु उन्ही को समर्पित करते हुए सर्वप्रथम गुरु स्तुति करता हूँ।क्योकि गुरु का स्थान ब्रह्मा,विष्णु,महेश से भी ऊँचा है। 
"गुरु प्रशान्तं भवभीतनाशं। 
विशुद्धबोधम् कलुषस्यहारम। 
आनंदरूपम न्यनाभिरामं। 
श्री गुरु फकीरां  नितरां नमामि।।"
आज मेरा उद्देश्य आपको  भारत की ऐसी सभ्यता से परिचित कराना है। ,जिसके समान आदर्शो वाली ही कोई सभ्यता नहीं है ,फिर उससे उच्च तो कहाँ मिलेगी। 
क्या कभी सोचा की हमारे प्राचीन वैदिक धर्म के सिद्धांत कितने सर्वोच्च थे।
क्या थे वो सिद्धांत ?
जैसे : माता पिता ,गुरुजनो की पूर्ण मन से सेवा करना ,ईश्वर द्वारा दिए गए कर्तव्य कर्मो को ईश्वरीय आज्ञा मानकर करना,तथा खान पान का विशेष ध्यान रखते हुए सात्विक मन तथा मजबूत तन के साथ  साधना करना है। 
उपरोक्त सभी गुणों को आधुनिक भारत वर्ष लगभग त्याग ही चूका है ,तो शेष विश्व से तो क्या उपेक्षा करना। 
आज के परिदृश्य में अगर कोई एक अकेला परिवार भी उपरोक्त गुणों को संजोय हुए है,तो वह ही अपने आप में मिसाल है। आज मै आपका परिचय ऐसे ही एक गाँव से कराने जा रहा हूँ ,जो गाँव (जिसकी आबादी लगभग १० से १२ हजार है।)वैदिक सभ्यता के सभी अनमोल गुण रूप मोतियों को अपनी मातृभूमि की गोद में सदियों से संजोय हुए है। इस गाँव में लगभग 500 सालो से ग्रामीण इन वैदिक गुणों को अपनी आने वाली नस्लों की, नसों में,रक्त के साथ बचपन से प्रवेश करा देते है। 
परिचय :सर्वप्रथम इस गाँव का परिचय देता हूँ। यह गाँव भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश राज्य के गंगा,यमुना जैसी दिव्य नदियों के दोआब में उपस्थित सहारनपुर जिले के देवबन्द तहसील में स्थित है ,जिसका नाम मिरगपुर है। इस गाँव में सभी हिन्दू है ,और सभी का मुख्य व्यवसाय कृषि है।यहाँ के व्यक्ति अपने धर्म के प्रति बहुत ही जागरूक है। यही कारण है की इस गाँव ने पिछले 500 सालो से प्राचीन वैदिक पद्धति को अपने दामन में संभलकर रखा है।
 अब इस गाँव की वैदिक विशेषताओ का वर्णन करता हूँ -
 किसी भी धर्म का अपमान करना या आपस में वैवनस्य फैलाने का मेरा मकसद नहीं है।
परन्तु सत्य लिखना मेरा कर्तव्य है जो मुझे पूर्वजो से मिला है। 
लगभग 500 वर्ष पहले सम्पूर्ण भारत वर्ष पर मुगलो का अधिकार था।अतः देश में रहने वाले वैदिक धर्मार्थी पूर्ण रूप से दूसरे धर्मार्थियो की दया पर निर्भर थे,तथा पूर्ण रूप से असुरक्षित थे। अपनी सुरक्षा के लिए,अपने धार्मिक स्थलों की रक्षा के लिए हिन्दुओ को अनेक प्रकार के कर देने पड़ते थे। जजिया कर उनमे से ही एक था। गाँव के इतिहास की घटना मुगल सम्राट जहाँगीर के शासनकाल की है। उन दिनों में वे गाँव जो हिन्दुओ के थे ,देश में हो रहे जबरन धर्मांतरण के कारण बदल चुके थे।मिरगपुर में भी सभी का धर्म परिवर्तन किया जा चूका था। केवल एक परिवार ही शेष बचा था ,जो हिन्दू था।जिस पर अनेक प्रकार से परिवर्तन के दबाव डाले जा रहे थे।कभी उनके आँगन में बनते खाने में गाय का मांस डाल दिया जाता था,कभी उनको,औरतो और बच्चो सहित मार डालने की धमकी दी जाती थी। परिवार का मुखिया जिनका नाम मोल्हड़ था। ईश्वर में आस्था रखते हुए ना जाने कैसे अपने धर्म को तथा अपने परिवार को बचाये हुए था।
ऐसी अवस्था थी की न जाने कब इस परिवार पर हमला हो जाये और न जाने कब
वैदिक धर्म का यह अन्तिम स्तम्भ भी ध्वस्त हो जाये।
ईश्वर की इस सम्पूर्ण स्रष्टि में कोई भी घटना या दुर्घटना,न्याय या अन्याय ,पाप और पुण्य ईश्वर की इच्छा  के बगैर नहीं होता है। उनकी आज्ञा के बिना यहाँ कुछ भी संभव नहीं है। अगर यहाँ अन्याय अधिक बढ़ रहा है ,पाप अधिक बढ़ रहा है,दुष्टो से पृथ्वी त्राहि त्राहि कर रही है तो वह सब भी उन्ही की इच्छा से हो रहा है। ऐसी स्थिति में ईश्वरीय प्रांगण में,ईश्वरीय शरण में रहने वाले साधुओ की ,संतो की,साधारण मनुष्यो की रक्षा फिर कौन करता है। उसके संबंध में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं ही भगवद्गीता में  कहा है की -
"परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम 
धर्म संस्थापनाये सम भवामि युगे युगे।।
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। 
अभ्युथानम् धर्मस्य तदात्मानं सृज्याहमं।।"  
साधुओ की,सत्य की,अपने धर्म पर स्थिर रहने वाले व्यक्तियों की रक्षा के लिए,दुष्टो का पापियो का विनाश करने के लिए मै युग युग में जन्म लेता हु। भगवान ने फिर कहा की -जब जब धर्म का पतन होता है ,तथा अधर्म का विस्तार होता है तब तब अधर्म के विनाश के लिये तथा धर्म की स्थापना के लिए मै सुगुण रूप में(अर्थात पंचमहाभूत शरीर के रूप में)खुद का सृजन करता हूँ।
भगवान के कथन पूर्ण सत्य होते है ,मिरगपुर की घटना से भी यह सिद्ध होता है।जब मोल्हड़ भगत जी अपने धर्म व परिवार की रक्षा के लिए सिर्फ ईश्वर पर ही आश्रित थे,उन्ही दिनों में गाँव में एक अद्वितीय,दिव्य संत का आगमन हुआ। संत का नाम फकीरा दास जी था।
जीवन परिचय :फकीरादास जी का नाम फ़क़ीर चन्द था। जिनका जन्म राजस्थान प्रान्त के जोधपुर रियासत के इन्दरपुर गाँव में हुआ था। इनके पिताजी का नाम मस्तु तथा माता का नाम चन्दोरी था। ये दो भाई थे। छोटे भाई का नाम मणिधर था। वैरागी भाव जन्म से होने के कारण इन्होने गुरु अलिमस्त से शिक्षा ग्रहण करने के बाद घर त्याग दिया था और फिर सम्पूर्ण देश में भ्रमण किया था। प्रत्येक जगह इन्होने वैदिक धर्म का प्रचार,प्रसार किया। दुष्टो का विनाश करते हुए साधुओ की रक्षा करते हुए फकिरादास जी ग्राम मिरगपुर पहुंचे।और यही से इस गाँव के आधुनिक इतिहास का प्रारम्भ हुआ।
 गुरु फकीरदास जी शाम के समय ग्राम मिरगपुर पहुंचे। दो दिन तक उस अदभूत संत के पास कोई नहीं आया। हिन्दू  दूसरे धर्म के इतने अधिक दबाव में थे,की वे गुरु जी के पास तक नहीं आये। दो दिन तक साधु बिना कुछ खाये पिये ध्यान में बैठे रहे।दो दिन बाद उन्होंने प्रकृति को आदेश दिया जिसके आदेश से गाय भैस चराने वाले कुछ चरवाहे गुरु जी के पास आये और भोजन के लिए पूछा।गुरूजी ने कहा गाँव में क्या जाना,ये भूरी झोटी ही ले आओ इसका दूध निकालेंगे।ग्वालो ने बताया की यह भैस तो अभी औसर है ,अर्थात यह अभी ब्याही ही नहीं  है। अतः यह दूध नहीं देगी। परन्तु गुरु जी के कहने पर वे भैस को ले आये गुरूजी ने अपने लोटे में उसका दूध निकाला। बालको से कहा की जाओ गाँव में सबको कह दो की भंडारा है सब को खीर बंटेगी। ग्वालो ने कहा गुरूजी दूध एक ही लोटा है,और ग्रामीणो की संख्या अधिक है ,अतः आप ही भोग लगा ले।गुरूजी ने कहा कि  इस गाँव के साथ पडोसी गाँव भी आने पर इस दूध से बनी खीर खत्म नहीं होगी। जाओ सबको बुला लाओ। बालक पहले से ही आश्चर्य में थे की कैसे औसर भैस ने दूध दिया है। गुरूजी की बातो ने उन्हें और आकर्षित किया। सारी बात जाकर गाँव में बतायी। पड़ोसी गाँव तक भी यह खबर फ़ैल गयी। जिससे डरे हुए,घबराये हुए,बिखरे हुए वैदिक धर्म के अनुयायियों में पुनः हिम्मत आ गयी,उत्साह आ गया ,विश्वास हुआ की शायद ईश्वर ने हमारी सुन ली। सभी लोग गुरु जी के पास आये,गुरूजी ने सबको  भोग लगाया परन्तु लोटे का दूध ज्यो का त्यों रहा। इस घटना को देखकर मोल्हड़ भक्त समझ गए की ये साधारण संत नहीं है ,दिव्य पुरुष है। शायद ईश्वर ही संत रूप में आये है। गुरु जी के पास जाकर उन्होंने अपनी व्यथा सुनाई की किस प्रकार उन पर बार हमले हो रहे है। गुरु जी ने पूछा की तुम धर्म बचाना चाहते हो या प्राण बचाना। मोल्हड़ भक्त ने जवाब दिया की गुरुदेव धर्म बचाना है प्राण जाने है तो चले जाए। गुरूजी ने फिर पूछा तम कितने लोग हो तो उन्होंने बताया की हिन्दू धर्म को मानने वाले गुर्जर जाति के हम सिर्फ सात ही बचे है।
गुरूजी ने आदेश दिया की आज रात आततायियों को मार डालो ,सिर्फ 40 लोग ही तुमसे बचेंगे। भक्त के लिए गुरु जी के वचन ईश्वर के वचन थे। उन्होंने वैसा ही किया सुबह तक सब को मारते रहे और पास में बहने वाली काली नदी (जो आज भी बह रही है) में डालते रहे। 40 लोग बचकर भाग गए,और दिल्ली जाकर सब घटना को दरबार में कह सुनाया। उस रात गुरूजी ने सब लोगो को तन्द्रा में ला दिया था जिससे कोई उठ ही नहीं पाया। फौज आई और भक्त परिवार के 5 सदस्यों को पकड़कर ले गयी। मोल्हड़ भक्त गुरूजी के पास आये और सब घटना कह सुनाई ,गुरूजी पहले से ही सब कुछ जानते थे। उन्होंने भक्त को विश्वास दिलाया की सुबह तक सब वापस आ जायेगे। रात को गुरूजी सूक्ष्म शरीर से दिल्ली पहुंचे ,कारागार की दीवारे तथा पांचो की जंजीरे तोड़कर उन्हें आजाद कर दिया। और गाँव जाने का आदेश दिया। जेलर व अन्य कारागार के रक्षक मूर्छित से हुए स्वप्न रूप से सब कुछ देखते रहे। उन्होंने सब घटना उच्च अधिकारी को बताई। अधिकारी ने उन्हें पकड़ने के लिए अधिक सेना के साथ दरोगा को गाँव में भेजा। पांचो गाँव आये,तो फिर काली नदी के तट पर गुरूजी को ध्यान लगाए देखा। उधर सेना भी नदी किनारे आ गयी।हाथी घोड़ो पर सवार सैनिको ने जैसे ही आगे बढ़ने का प्रयास किया ।हाथी,घोड़े आगे नहीं बढे ,सैनिको ने बहुत प्रयास किया परन्तु वे नदी के जल में नहीं गए।कई दिनों तक फौज नदी किनारे ही डेरा डाले रही परन्तु किसी ने आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं की। कुछ दिनों बाद फौज वापस हो गयी,और मोल्हड़ भक्त का धर्म भी सुरक्षित हो गया।
अब जब मोल्हड़ भक्त ने गुरूजी से दीक्ष मांगी तो गुरूजी ने कहा -
"गंठा लसन तंबाकू जोई ,मदिरा मॉस तजे शिष्य सोई। 
हमारा धर्म  रहेगा जब तक मिरगपुर सुख पावेगा तब तक।।
सत्त साहिब श्रद्धालु जापि सदा पास में मोक्ष प्रतापी। "     
गुरूजी ने कहा की गंठा (प्याज),लहसुन ,मदिरा,मांस,तम्बाकू,बीड़ी,सिगरेट,गुटका आदि सभी नशीली चीज़ो का सेवन कभी मत करना जब तक मिरगपुर वासी इस नियम का पालन करेंगे,वो हमेशा सुखी रहेंगे।
तुम हमेशा सत्त साहिब मंत्र का जाप करते रहना,उसी से तुम भवसागर से पार जाओगे।
जब गुरूजी जाने लगे तब मोल्हड़ भक्त ने गुरूजी से कुछ निशानी मांगी तो गुरूजी ने पास में पड़े हुए एक पत्थर पर हाथ रखते हुए कहा की आज से तुम इस पंजा साहिब की पूजा करना। ये पंजा साहिब ही तुम्हारे सब मनोरथ पुरे करेगा। आज भी वो पंजा साहिब ज्यो का त्यों बाबा फकीरा दास जी की दिव्य सिद्ध कुटी पर रखा है।जिसकी समस्त ग्राम वासी अपने इष्ट की तरह ही पूजा करते है।
यही  मिरगपुर गाँव की मुख्य विशेषता है। 10 हजार आबादी वाले इस गाँव में उपरोक्त तामसिक चीज़ो का कभी सेवन नहीं करते। इस गाँव का प्रत्येक व्यक्ति चाहे वो गाँव में,किसी कस्बे में,नगर में या महानगर में रहे परन्तु इस नियम का पालन करता है।इस गाँव के युवा पीढ़ी भी अपने बुज़ुर्गों द्वारा कहे गए नियम का पूर्ण पालन करते हैं।गाँव से बड़ी संख्या मे भारतीय सेना में भी जवान हैं,तो वहाँ कैसे उपरोक्त नियम का पालन होता होगा। शराब और मांस से तो आप बच सकते हैं,परंतु प्याज़ और लहसुन से बच पाना तो लगभग असंभव सा लगता है।और ट्रेनिंग के समय मे तो और मुश्किल है।परंतु वहाँ भी इस गाँव का जवान इस नियम का पालन करता है।जो इनकी द्र्ढ इच्छा शक्ति तथा गुरु बाबा फकीर दास में इनकी अटूट श्रद्धा को ही प्रदर्शित करता है।सेना में ट्रेनिंग के समय लगभग 1 वर्ष तक ये लोग मीठा ही खाते हैं,जैसे शाकर या बूरे के साथ रोटी का खाना, दही चावल के साथ रोटी खाना,जब कभी नमक का मन होता है,तो घर से लाये हुए आचार से रोटी खाते हैं।परंतु प्याज़ व लहसुन से बनी सब्जी का उपयोग नहीं करते हैं ।ट्रेनिंग के बाद धीरे धीरे वह ऐसी व्यवस्था कर ही लेता है की प्याज़ व लहसुन का तड़का लगाने से पहले अपनी सब्जी निकलवा ले।इस गाँव से कुछ इंजीनियर्स,डॉक्टर्स इंगलेंड,अमेरिका भी गए हैं।कुछ वहाँ पर नौकरिया भी कर रहे हैं।परंतु वहाँ पर भी ये इस नियम का पालन करते हैं।आज सभी जानते हैं की उन देशों मे इन चीजों का परहेज करना कितना मुश्किल है,परंतु वे लोग भी प्याज़, लहसुन, शराब, मांस, मछ्ली, अंडा, बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू, गुटका, जैसी चीजों का सेवन नहीं करते हैं। आज के परिदृश्य मे ये पागलपन या कोरा अंधविश्वास या अनपढ्ता भी कही जा सकती है।परंतु फिर भी वे इस नियम का पालन करते हैं। अब इन चीजों का सेवन ना करने से क्या फायदे हैं। उनका वर्णन तो शायद मैं कर भी नहीं पाऊँगा परंतु फिर भी प्रयास करता हूँ।
वेदिक सभ्यता को, अपने धर्म को आगे बढ़ाने के लिए, प्रकृति के, मानव के,मानवता के, उपकार हेतू यहाँ पर यज्ञ चलता रहता है।मंत्रो का उच्चारण होता रहता है।साधु संतो का यहाँ बड़ा ही विशेष सत्कार किया जाता है। साधु संतो को तो यहाँ ईश्वर के समान समझा जाता है।मेहमान का बड़ा सम्मान होता है। सभी धर्मो के व्यक्तियों को अपनी मन्यताओ के अनुसार पूजा में सहयोग दिया जाता है।आपसी एकजूटता बहुत अधिक है।किसी एक के साथ कुछ होने पर पुरा गाँव एक हो जाता है।आज तक गाँव मे कोई चोरी नहीं हुई है।फकीरा दास जी की याद में दो मंदिर सिद्धकुटी व गुरुद्वारा है,जिस पर करीब 200 बीघा ज़मीन दान दी गयी है। इस गाँव का मुख्य व्यवसाय कृषि है। परंतु फिर भी यह सहारनपुर ज़िले का सबसे अधिक खुशहाल गाँव है।अगर कृषि पर आधारित गाँव की प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा निकाला जाए,तो शायद अमेरिका के गाँव मे जो केवल कृषि आधारित गाँव हैं,उनकी प्रति व्यक्ति आय इतनी नहीं होगी। इस गाँव की अपने आस पड़ोस के 17 गाँव मे ज़मीन है,जो इन लोगों ने अपनी मेहनत से खरीदी है।
इस गाँव मे भ्रूण हत्या नहीं होती है।बेटियों के पढ़ने के लिए यहाँ इंटर कॉलेज है। सभी गाँव की तरह यहाँ के लोग अपनी इज्जत के लिए जागरूक हैं।
अब कुछ वैज्ञानिक तथ्यों का भी वर्णन करता हूँ:-
यहाँ के व्यक्ति का औसत कद, औसत वज़न भारत के औसत कद व औसत वज़न से बहुत अधिक है। सभी बीमारियों का औसत भी भारत के औसत से बहुत कम है यहाँ पर व्यक्ति के दिमाग की सर्जन क्षमता अपने दायें बायेँ के गाँव से अधिक है।
अभी कुछ समय पहले पर्यावरण वैज्ञानिकों की सहायता से इस गाँव के वायुमंडल मे उपस्थित प्रदूषण की जांच कराई गयी जो पड़ोसी गाँव के वायुमंडल से बीस गुना कम हैं।यहाँ पर लगभग ना के बराबर ही श्वांस के रोगी है।कोई भी फेफड़ों का रोगी नहीं है।किडनी का भी कोई रोगी नहीं है।  शराब का सेवन नहीं है,अतः यहाँ लीवर संबंधी बीमारियाँ भी नहीं होती हैं।
सम्पूर्ण गाँव मे किसी भी व्यक्ति के माता पिता वृद्धाश्रम या अकेले नहीं रहते हैं।कोई भी व्यक्ति अपने पुत्र की शादी मे दहेज की मांग नहीं करता है, तथा पुत्री की शादी मे दिल खोल के खर्च करता है।
लगभग पूरे गाँव मे 2000 परिवार हैं,और लगभग सभी परिवारों के पास कृषि के अपने सभी यंत्र हैं, जैसे ट्रैक्टर ट्राली,हैरो,टीलर सभी हैं।
गाँव मे दूध और दही की नदियां बहती हैं।
ऐसे समय मे जब हर तरफ से देश के विरुद्ध गतिविधियों की आवाज़ें सुनाई दे रही हैं।
इस गाँव के सभी लोग इसी मातृभूमि पर जन्म लेने की ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।
क्योंकि इस गाँव मे 1300 के लगभग लाइसैन्सी हथियार हैं
जिनको इस गाँव के लोगों ने स्वयं की रक्षा के लिए सरकार से प्राप्त किए हैं।
अपने जन्म भूमि का वर्णन करने मे मुझे भी इतना ही गर्व महसूस होता है,जितना प्रत्येक मिरगवासी को होता है।लोग मेरी इस पवित्र जन्म भूमि मे अनेक कमियाँ भी कहते हैं,परंतु पूर्ण सत्य है,की मेरी इस जन्म भूमि से श्रेष्ठ कोई दूसरी भूमि इस धरा पर नहीं है।अपने प्रत्येक ग्रामवासी के तरह मैं भी यही चाहता हूँ की मैं बार बार इस पावन स्थली पर जन्म लूँ और गाँव की परंपराओं को आगे बढ़ाऊँ। 
गुरु बाबा फकीरा दास जी फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को मिरगपुर गाँव में आये थे। अतः इसी उपलक्ष में प्रतिवर्ष इसी तिथि पर ग्राम में मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमे देश के दूर दूर स्थान से श्रद्धालु आते है और अपनी मन्नत पूरी होने पर प्रसाद चढ़ाते है।
सभी का मेरी और मेरे गाँव की इस अनमोल अमृत तुल्य कथा को पढ़ने का,श्रवण करने का ,मेरे साथ मेरी इस दुनिया में आने का ह्रदय से धन्यवाद।
     blog : dailyyoga4health.blogspot.com 

No comments:

Post a Comment